बच्चे अपने बचपन से ही अपनी भावनाओं को व्यक्त करने व दूसरों की भावनाओं को समझने की विधि को भाषा कहते है। भाषा विकास तब होती है जब बच्चे उसे समझे व संवाद करें।
जन्म से लेकर पाँच वर्ष की आयु तक, बच्चे बहुत तेज़ गति से भाषा विकसित करते हैं। भाषा को समझने की क्षमता व संवाद करने की क्षमता तेज गति से विकसित होती हैं। इनकी भाषा पहले शब्द के रूप में फिर दो शब्दों के वाक्य और तीन शब्दों के वाक्यों के रूप में धीरे-धीरे विकसित होती है। बच्चे आसानी से घर के सदस्यों से, पड़ोसियों से व पाठशालाओं से भिन्न-भिन्न भाषाएँ सीखते हैं। सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते हैं कुछ बच्चे भाषा का विकास शीघ्र कर लेते हैं तो कुछ धीमी गति से । विकास के किसी भी अन्य पहलू से अधिक, भाषा विकास मस्तिष्क की वृद्धि और परिपक्वता को दर्शाता है।
भाषा शिक्षण में नाटक के अधिकांश स्वरूपों पर लागू किया जा सकता है । नाटक की गतिविधियों को वर्गीकृत करने के लिए निम्नलिखित विशेषताओं का उपयोग किया जा सकता है।
नाटक की गतिविधियों से बच्चों में भाषा विकसित कर सकते हैं जैसे सरल शब्द/वाक्यों को बोलने का प्रयास करवा सकते है।
भाषा की सटीकता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उच्चारण, शब्दावली और व्याकरण या पाठ-शैली के अभ्यास की आवश्यकता होती है। बच्चों को नाटक की गतिविधियों के लिए न केवल संवाद को स्मरण करना ही नहीं बल्कि उन संवादों को पढ़कर, समझकर प्रत्येक भूमिका निभानी होती है। नाटक विशेष शब्दावली को सीखने और शिक्षार्थियों के लिए मौखिक गतिविधियों और शैलियों को सक्रिय रूप से अभ्यास करने के लिए संदर्भ प्रदान कर सकता है।
उपर्युक्त पहलुओं के परिणामस्वरूप, बच्चों को भाषा सीखने की प्रेरणा नाटक से प्राप्त हो सकती है, जिसमें सीखने वाले का संपूर्ण व्यक्ति, सहयोग का अनुभव, उपलब्धि की भावना और रचनात्मक दृष्टिकोण में आनंद लेता है।
बाबाजी विद्याश्रम के छात्रगण द्वारा एक नाटक......
पूरा नाटक देखने के लिए इस लिंक को दबाइए